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लड़के भी हारते हैं इश्क़ में

लड़के भी हारते हैं इश्क़ में, खो देते हैं अपना एक हिस्सा हमेशा के लिए रोते हैं बिलखते हैं, चीख़ते हैं बंद लबों से  दम तोड़ देते हैं अपना, किसी की याद में दाढ़ी बढ़ाकर छुपा लेते हैं, अपने चेहरे का ग़म लगाते हैं बिना फ़िल्टर की डीपी और दिखाते हैं सच को ज्यों का त्यों गुज़ार देते हैं महीनों एक ही जीन्स में पौंछना भूल जाते हैं अपने जूतों को अमूमन सूखते हैं इनके भी आँसू गाल पर ही बिता देते हैं कई कई दिन, बिना देखे चेहरा अपना रातों की नींद रहती है बाक़ी मुँह रखकर सो जाते हैं मेज पर  काली सी आँखों में लिए चलते हैं कुछ मरे हुए ख़्वाब और कहलाते हैं आवारा निठल्ला बेकार  अपनी गाड़ी को दौड़ाते हैं सुनसान इलाक़ों में दूर कहीं अनजान रास्तों में भूल जाते हैं अक्सर कहाँ जाना हैं खाते हैं चोट अपनों से, अज़ीज़ लोगों से सुनते हैं ताने टूटते हैं बिना शोर किए, चुपचाप किसी कोने में  भीतर ही भीतर बिना शिकायत किए दफ़्न कर देते हैं अपने जज़्बातों को  पसीने से बनाते हैं क्लिंजर अपना साफ़ करते हैं पेट्रियार्की का धब्बा भूल जाते हैं ख़ुद को सबकी ख़ुशी के लिए और अंत में  ख़...
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वायरस

शायद कुछ ज्यादा बाहर निकल गए थे हम, शायद कुछ ज्यादा बाहर निकल गए थे हम यही वजह थी के लौट को घर को जाना पड़ा हमारी जान इस इकॉनमी से कई गुना ज़्यादा जरूरी है अफसोस के ये समझाने के लिए एक वायरस को आना पड़ा हम ग़ैर जरूरी मुद्दों में उलझे थे शायद इसीलिए कुदरत को हमे ये आईना दिखाना पड़ा अस्पताल मजहबी लड़ाइयों से ज्यादा जरूरी मुद्दा है अफसोस हमें ये समजाने के लिए एक वायरस को आना पड़ा कोई ऐसा भी मर्ज है कहीं के जिसकी कोई दवा नहीं, कोई ऐसा भी मर्ज है कहीं के जिसकी कोई दवा नहीं, तौबा इसके आगे तो इश्क़ को भी मुह छुपाना पड़ा जंग आपस में नहीं होती आफत से होती है अफसोस हमे ये समजाने के लिए एक वायरस को आना पड़ा हमने तो हथियार बनाये, मैदान ऐ जंग तैयार किये, ये तो इस दफा हमे मजबूरन साथ निभाना पड़ा  जान जाए भले किसी भी मुल्क में तो दर्द होता है सबको, अफसोस के हमे ये समझाने के लिए एक वायरस को आना पड़ा... अफसोस के हमे ये समझाने के लिए एक वायरस को आना पड़ा...

माना ज़िन्दगी के रास्ते अलग थे बहोत

जाना... माना ज़िन्दगी के रास्ते अलग थे बहोत, लेकिन मुझे कोनसा सफर अकेले करना था... में तो चल दिया था साथ तुम्हारे, और चलता रहा उस वक़्त भी जिस वक़्त में मुझे रुकना था, मंज़िलो की कहाँ कोई खबर थी मुझे, कहाँ ध्यान रहा कोई रास्ता, सब कुछ तो खो चुका था मैं, बस यार एक तू ही तो मेरे पास था, ज़िन्दगी से शिकायतें होती थी, तो में तुझे बहाने बना लेता था, हां थोड़ा ही सही मगर, कभी कभी तो मुस्कुरा लेता था, इश्क़ कहते कहते, खुद तुम्हारे मतलब बदलते चले गए, में तुम्हारी आँखों में ही उलझा रहा, और तुम्हारे सपने बदलते चले गए, हां ज़िन्दगी में अभी ठहराओ थे बहोत, लेकिन मुझे कोनसा इस सफर में अकेला रुकना था, जाना... माना ज़िन्दगी के रास्ते अलग थे बहोत, लेकिन मुझे कोनसा सफर अकेले करना था...

Mujhe samaj nahi aata kyun......

kyun mujhe nahi samaj aata kyun... kyun woh shakhs jisme mujhe apna sab kuch nazar aaya wo doobara nazar tak nahin aaya kyun woh raahi jise mil gaya hai koi aur humsafar laut kar ghar nahi aaya kyun maan liya kisine apna aur fenk diya agale hi pal jese kabhi koi raabta na tha kyun wo jo sirf aur sirf mera lagne laga tha wo mera na tha kyun wo jisne tumhe dikha diye tamam haseen khwab sabko kuchl ke aage badh jata hai  aur kyun tumhara zahen yaqeen karta hai itna ke bas umeed liye reh jata hai kyun kisi gair ke diye zakhm ka kabhi koi fark nahi padta aur kyun kisi apne ke thukra dene par dil fir sambhal nahi pata  mujhe nahi samaj aata kyun ek parinda aasman mein udte hue reh jaata hai itna piche ke doobara use apna kafila nahin dikhta  aur akhir kyu dar badar bhatkane par bhi use tinka tinka jod kar banaya apna ghonsla nahi milta  mujhe nahi samaj aata kyun us mehngi car ko jo tezi se guzar jati hai sadak ke kinare soya bacha nahin dikhta  aur akhir kyun faqt ek...

तुम सब राम बन जाओ मैं रावण ही ठीक हूँ....

कुछ के लिए बुरा तो कुछ के लिए ताकत और क्षमता हूँ हां में वही रावण हूँ.... अपने झूठे स्वाभिमान का सन्मान लोग सतयुग से करते आ रहे है औरतों की इज़्ज़त उतारने वाले आज खड़े हो के मेरे पुतले जला रहे है पुतले जलाने से क्या होगा हर तरफ राख और धुआं होगा अपने अंदर झांक के देख ये गुरूरी रावण जो तुजसे अच्छा कई गुना होगा.... ना में मरा था और ना में हारा था मुझे बस मेरे विश्वास और भरोसे ने मारा था हां किया गलत एक औरत की इज़्ज़त के लिए दूसरी को उठा लाया था... पर उस राम ने सीता को गीता सा पाक और कुरान सा साफ ही वापस पाया था... तो क्यूं सतयुग से लेके कलयुग तक आज भी सीता अग्निपरीक्षा से गुजरती है कभी अपनो में तो कभी परायों में वो आज भी अपनी पवित्रता साबित करती है... हां में वही रावण हूँ जिसको अयोध्या के राजा राम ने हराया था और जिसके लिए हराया था वो खुद भी उसे अपने पास ना रख पाया था... हां तो ठिक है में घमंडी में पापी में ताकत का प्रतीक हूँ हां में वही दशानंद ज़िद्दी हूँ और थोड़ा सा ठिठ हूँ... तुम सब राम बन जाओ मैं  रावण ही ठीक हूँ....

लड़को की जिंदगी उतनी आसान नहीं होती...

करते है फरमाइशें पूरी ये सब की और अपनी ज़रूरतों का ज़िक्र तक नहीं करते जी हां ये लड़के ही है जनाब जो उठाये रखते है ज़िम्मेदारिया कंधो पर मगर उफ्फ तक नहीं करते.... यूँ तो दिल में समुन्दर भरा है इनके पर आंखों में कभी नमी नहीं होती और जितना सोचते हो तुम लड़को की ज़िंदगी उतनी आसान नहीं होती... घर के बड़े हो या छोटे कंधे हमेशा ज़िम्मेदारीयों से भरे रहते है अपने ही परिवार के खातिर ये अपनो से ही दूर रहते है घरवाले परेशान ना हो इनकी फिक्र मैं इसलिए फ़ोन पर हर बार में ठीक हूँ ही कहते है लड़की की विदाई में तो ज़माना रोता है और इनके घर छोड़ जाने की चर्चा कुछ खास नही होती और जितना सोचते हो तुम लड़को की ज़िंदगी उतनी आसान नहीं होती... मां के लाडले बेटे है बेशक पर अपनी अलग पहचान बनानी पड़ती है एक नौकरी की खातिर सेंकडो ठोकरे खानी पड़ती है कभी हर बात पे ढेरों नखरे होते थे जिनके बाहर रहकर सारि फरमाइशें भुलानी पड़ती है कुछ लड़कों को ज़रूरते जगाये रखती है और कुछ को ज़िमेदारियां सोने नहीं देती और जितना सोचते हो तुम लड़को की ज़िंदगी उतनी आसान नहीं होती... फिर एक वक्त वो भी आता है जब इन्हें प्यार ...

Dear Nature...

Dear Nature ये एक अपोलोजी लेटर है... में जानता हूँ मैंने इसे लिखने में उतनी ही देर कर दी है जितना आपको बचाने में... मैंने सुना है एक चिड़ियाँ जब घर लौटी तो कटी हुई डालियों के बीच अपने घोंसले को बिखरा हुआ पाके रो बैठी ये उसका तीसरा घर था ना वैसे हमे इस बात से ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा है, आखिर वो इन्सान नई है ना... कहते है अगर कोई जुर्म करते वक़्त अपनी छवि देख लो तो गिल्ट के मारे वो कर नहीं पाओगे, नदियाँ अब साफ रही नही तो उसमें खुद की छवि दिखती भी नहीं, इसलिए हमने खुद को अपराधी मानना भी छोड़ दिया है... यह बीज बोई मिट्टी पे कॉन्क्रेट के रास्ते बनाके ना जाने हम कहाँ जा रहे है, शायद अपने अंत की और जिसे हम प्रगति की शुरुआत समज बैठे है, ऐसा नहीं है कि हमने कोशिश नहीं कि, हमने आवाज़ बहोत उठायी, फिर जवाब में ये हल सुनाया गया के जितने पेड़ कट रहे है उतने ही पौधे लगाए भी जाएंगे, ये सुनके ज़्यादातर लोग मान गए वो समझे ही नही के पौधों को पेड़ बन ने में  जितना वक़्त लगेगा शायद उतना ही वक़्त बाकी है हमारे पास... ज़रसल हमे कुछ और ज़मीन चाहिए, अपने घरों के लिए जिसमे बहोत सारे लकड़ो के दर...