जाना...
माना ज़िन्दगी के रास्ते अलग थे बहोत,
लेकिन मुझे कोनसा सफर अकेले करना था...
में तो चल दिया था साथ तुम्हारे,
और चलता रहा उस वक़्त भी जिस वक़्त में मुझे रुकना था,
मंज़िलो की कहाँ कोई खबर थी मुझे,
कहाँ ध्यान रहा कोई रास्ता,
सब कुछ तो खो चुका था मैं,
बस यार एक तू ही तो मेरे पास था,
ज़िन्दगी से शिकायतें होती थी,
तो में तुझे बहाने बना लेता था,
हां थोड़ा ही सही मगर,
कभी कभी तो मुस्कुरा लेता था,
इश्क़ कहते कहते,
खुद तुम्हारे मतलब बदलते चले गए,
में तुम्हारी आँखों में ही उलझा रहा,
और तुम्हारे सपने बदलते चले गए,
हां ज़िन्दगी में अभी ठहराओ थे बहोत,
लेकिन मुझे कोनसा इस सफर में अकेला रुकना था,
जाना...
माना ज़िन्दगी के रास्ते अलग थे बहोत,
लेकिन मुझे कोनसा सफर अकेले करना था...
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