लड़के भी हारते हैं इश्क़ में, खो देते हैं अपना एक हिस्सा हमेशा के लिए रोते हैं बिलखते हैं, चीख़ते हैं बंद लबों से दम तोड़ देते हैं अपना, किसी की याद में दाढ़ी बढ़ाकर छुपा लेते हैं, अपने चेहरे का ग़म लगाते हैं बिना फ़िल्टर की डीपी और दिखाते हैं सच को ज्यों का त्यों गुज़ार देते हैं महीनों एक ही जीन्स में पौंछना भूल जाते हैं अपने जूतों को अमूमन सूखते हैं इनके भी आँसू गाल पर ही बिता देते हैं कई कई दिन, बिना देखे चेहरा अपना रातों की नींद रहती है बाक़ी मुँह रखकर सो जाते हैं मेज पर काली सी आँखों में लिए चलते हैं कुछ मरे हुए ख़्वाब और कहलाते हैं आवारा निठल्ला बेकार अपनी गाड़ी को दौड़ाते हैं सुनसान इलाक़ों में दूर कहीं अनजान रास्तों में भूल जाते हैं अक्सर कहाँ जाना हैं खाते हैं चोट अपनों से, अज़ीज़ लोगों से सुनते हैं ताने टूटते हैं बिना शोर किए, चुपचाप किसी कोने में भीतर ही भीतर बिना शिकायत किए दफ़्न कर देते हैं अपने जज़्बातों को पसीने से बनाते हैं क्लिंजर अपना साफ़ करते हैं पेट्रियार्की का धब्बा भूल जाते हैं ख़ुद को सबकी ख़ुशी के लिए और अंत में ख़...