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Showing posts from October, 2019

तुम सब राम बन जाओ मैं रावण ही ठीक हूँ....

कुछ के लिए बुरा तो कुछ के लिए ताकत और क्षमता हूँ हां में वही रावण हूँ.... अपने झूठे स्वाभिमान का सन्मान लोग सतयुग से करते आ रहे है औरतों की इज़्ज़त उतारने वाले आज खड़े हो के मेरे पुतले जला रहे है पुतले जलाने से क्या होगा हर तरफ राख और धुआं होगा अपने अंदर झांक के देख ये गुरूरी रावण जो तुजसे अच्छा कई गुना होगा.... ना में मरा था और ना में हारा था मुझे बस मेरे विश्वास और भरोसे ने मारा था हां किया गलत एक औरत की इज़्ज़त के लिए दूसरी को उठा लाया था... पर उस राम ने सीता को गीता सा पाक और कुरान सा साफ ही वापस पाया था... तो क्यूं सतयुग से लेके कलयुग तक आज भी सीता अग्निपरीक्षा से गुजरती है कभी अपनो में तो कभी परायों में वो आज भी अपनी पवित्रता साबित करती है... हां में वही रावण हूँ जिसको अयोध्या के राजा राम ने हराया था और जिसके लिए हराया था वो खुद भी उसे अपने पास ना रख पाया था... हां तो ठिक है में घमंडी में पापी में ताकत का प्रतीक हूँ हां में वही दशानंद ज़िद्दी हूँ और थोड़ा सा ठिठ हूँ... तुम सब राम बन जाओ मैं  रावण ही ठीक हूँ....

लड़को की जिंदगी उतनी आसान नहीं होती...

करते है फरमाइशें पूरी ये सब की और अपनी ज़रूरतों का ज़िक्र तक नहीं करते जी हां ये लड़के ही है जनाब जो उठाये रखते है ज़िम्मेदारिया कंधो पर मगर उफ्फ तक नहीं करते.... यूँ तो दिल में समुन्दर भरा है इनके पर आंखों में कभी नमी नहीं होती और जितना सोचते हो तुम लड़को की ज़िंदगी उतनी आसान नहीं होती... घर के बड़े हो या छोटे कंधे हमेशा ज़िम्मेदारीयों से भरे रहते है अपने ही परिवार के खातिर ये अपनो से ही दूर रहते है घरवाले परेशान ना हो इनकी फिक्र मैं इसलिए फ़ोन पर हर बार में ठीक हूँ ही कहते है लड़की की विदाई में तो ज़माना रोता है और इनके घर छोड़ जाने की चर्चा कुछ खास नही होती और जितना सोचते हो तुम लड़को की ज़िंदगी उतनी आसान नहीं होती... मां के लाडले बेटे है बेशक पर अपनी अलग पहचान बनानी पड़ती है एक नौकरी की खातिर सेंकडो ठोकरे खानी पड़ती है कभी हर बात पे ढेरों नखरे होते थे जिनके बाहर रहकर सारि फरमाइशें भुलानी पड़ती है कुछ लड़कों को ज़रूरते जगाये रखती है और कुछ को ज़िमेदारियां सोने नहीं देती और जितना सोचते हो तुम लड़को की ज़िंदगी उतनी आसान नहीं होती... फिर एक वक्त वो भी आता है जब इन्हें प्यार ...

Dear Nature...

Dear Nature ये एक अपोलोजी लेटर है... में जानता हूँ मैंने इसे लिखने में उतनी ही देर कर दी है जितना आपको बचाने में... मैंने सुना है एक चिड़ियाँ जब घर लौटी तो कटी हुई डालियों के बीच अपने घोंसले को बिखरा हुआ पाके रो बैठी ये उसका तीसरा घर था ना वैसे हमे इस बात से ज़्यादा फर्क नहीं पड़ा है, आखिर वो इन्सान नई है ना... कहते है अगर कोई जुर्म करते वक़्त अपनी छवि देख लो तो गिल्ट के मारे वो कर नहीं पाओगे, नदियाँ अब साफ रही नही तो उसमें खुद की छवि दिखती भी नहीं, इसलिए हमने खुद को अपराधी मानना भी छोड़ दिया है... यह बीज बोई मिट्टी पे कॉन्क्रेट के रास्ते बनाके ना जाने हम कहाँ जा रहे है, शायद अपने अंत की और जिसे हम प्रगति की शुरुआत समज बैठे है, ऐसा नहीं है कि हमने कोशिश नहीं कि, हमने आवाज़ बहोत उठायी, फिर जवाब में ये हल सुनाया गया के जितने पेड़ कट रहे है उतने ही पौधे लगाए भी जाएंगे, ये सुनके ज़्यादातर लोग मान गए वो समझे ही नही के पौधों को पेड़ बन ने में  जितना वक़्त लगेगा शायद उतना ही वक़्त बाकी है हमारे पास... ज़रसल हमे कुछ और ज़मीन चाहिए, अपने घरों के लिए जिसमे बहोत सारे लकड़ो के दर...